Basanti Hawa-Kedarnath Agarwal
Here, I put a poem by Kedarnath Agarwal, its not even out of my memory, searched form the net, so ideally i should put it here. Hindi Poems Blog This website is a wonderful collection of Hindi poems. Ideally i should just point to that webpage but i just couldn't resist the temptation of putting it in my blog! I just loved this poem. The words are so well chosen, you actually feel as if u are wind.
I would suggest, read out loud, and nonstop, if possible in one breath.
बसंती हवा
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ।
सुनो बात मेरी -
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्त्मौला।
नहीं कुछ फिकर है,
बड़ी ही निडर हूँ।
जिधर चाहती हूँ,
उधर घूमती हूँ,
मुसाफिर अजब हूँ।
न आशा किसी की,
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
न प्रेमी न दुश्मन,
जिधर चाहती हूँ
उधर घूमती हूँ।
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
जहाँ को गई मैं -
शहर, गाँव, बस्ती,
नदी, रेत, निर्जन,
हरे खेत, पोखर,
झुलाती चली मैं।
झुमाती चली मैं!
हवा हूँ, हवा मै
बसंती हवा हूँ।
चढ़ी पेड़ महुआ,
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
थपाथप मचाया;
गिरी धम्म से फिर,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा,
किया कान में 'कू',
उतरकर भगी मैं,
हरे खेत पहुँची -
वहाँ, गेंहुँओं में
लहर खूब मारी।
पहर दो पहर क्या,
इसी में रही मैं!
खड़ी देख अलसी
लिए शीश कलसी,
मुझे खूब सूझी -
हिलाया-झुलाया
गिरी पर न कलसी!
इसी हार को पा,
हिलाई न सरसों,
झुलाई न सरसों,
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
मुझे देखते ही
हँसी ज़ोर से मैं,
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हँसी सब दिशाएँ,
हँसे लहलहाते
हरे खेत सारे,
हँसी चमचमाती
भरी धूप प्यारी;
बसंती हवा में
हँसी सृष्टि सारी!
हवा हूँ, हवा मैं
बसंती हवा हूँ!
- केदारनाथ अग्रवाल
7 comments:
COPY CAT!!!! :D
....and i say this inspite of it being in the 1st line!!! :D
Good poem...!
A favourite of me and my sister, and we both used to sing it together, don't know why it was so much fun doing it together..it was long , but still we remembered it!
:)
aapka bahut bahut Dhanyawad
yeh meri bhi pasandida Padya hai
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As I remember, I read this poem when, I was in 6th std. Basanti Hawa poem is really good poem which describe the nature of spring wind , how it is blowing quietly and most refreshingly.
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